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Abstract

प्रस्तुत शोधपत्र के माघ्यम से मै स्वयं अनुभव किये गये प्राणायाम के महत्व को बताना चाहती हूॅं। इसके नित्य अभ्यास से मैनें रक्तशर्करा को स्वस्थ धरातल पर प्राप्त किया है। इसे जीवन का अंग बनाकर मै निरन्तर स्वास्थ्य लाभ करते हुये कहना चाहूॅंगी कि सदियो पूर्व हमारे ऋषिमुनियों और विद्वानों द्वारा बताया गया प्राणायाम सार्थक है। इसे तब तक ही करना चाहिये जब तक थकान महसूस हो। प्राणायाम की समस्त क्रियायें किसी योग्य गुरु के संरक्षण मे ही करना चाहिये।

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