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Abstract
संस्कृत वाङमय विश्व का प्राचीनतम तथा वृहदतम वाङमय है जिसके ज्ञान-गर्भ में विश्व को समस्त ज्ञान पल्लवित तथा पोषित हुआ है। भारतीय संस्कृति का प्राणत्व संस्कृत वाङमय में ही समावेष्टित है। भारत की तपोभूमि पर संस्कृति की अजस्र ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा संवेगाात्मक शक्ति के सम्वर्द्धन से मानव अध्यात्म की ओर मुड़कर संस्कृति से अनुप्राणित होता रहता है तथा दुःख के निवारण के लिए पुरूषार्थ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) विशेष तथा मोक्ष की महत्ता को समझते हुए आत्मा के शुद्ध रूप ज्ञानावस्था की ओर उन्मुख होता है और उस परमतत्व की प्राप्ति में सफल होता है।